Monday 25 March 2019

Spiraling crystal is the key to exotic discovery....

Several of the hotly studied topological materials to date are known as topological insulators. Their surfaces are expected to conduct electricity with very little resistance, somewhat akin to superconductors but without the need for incredibly chilly temperatures, while their interiors -- the so-called "bulk" of the material -- do not conduct current.

Now, a team of researchers working at the Department of Energy's Lawrence Berkeley National Laboratory (Berkeley Lab) has discovered the strongest topological conductor yet, in the form of thin crystal samples that have a spiral-staircase structure. The team's study of crystals, dubbed topological chiral crystals, is reported in the March 20 edition of the journal Nature.

The DNA-like spiraling structure, or helicoid, in the crystal sample that was the focus of the latest study exhibits a chirality or "handedness" -- as a person can be either left-handed or right-handed, and the left hand is a mirror image of the right hand. Chiral properties in some cases can be flipped, like a left-handed person becoming a right-handed person.

"In this new work we are essentially proving that this is a new state of quantum matter, which is also exhibiting nearly ideal topological surface properties that emerge as a consequence of the chirality of crystal structure," said M. Zahid Hasan, a topological materials pioneer who led the materials theory and experiments as a visiting faculty scientist in the Materials Sciences Division at Berkeley Lab. Hasan is also the Eugene Higgins Professor of Physics at Princeton University.

A property that defines topological conductivity -- which is related to the electrical conductivity of the material's surface -- was measured to be about 100 times larger than that observed in previously identified topological metals.

This property, known as the surface Fermi arc, was revealed in X-ray experiments at Berkeley Lab's Advanced Light Source (ALS) using a technique known as photoemission spectroscopy. The ALS is a synchrotron that produces intense light -- from infrared to high-energy X-rays -- for dozens of simultaneous experiments.

Topology is a well-established mathematical concept that relates to the preservation of an object's geometrical properties even if an object is stretched or deformed in other ways. Some of its experimental applications in 3D electronic materials -- such as discovering topological behaviors in materials' electronic structures -- were only realized just over a decade ago, with early and continuing contributions by Berkeley Lab.

"After more than 12 years of research in topological physics and materials, I do believe that this is only the tip of the iceberg," Hasan added. "Based on our measurements, this is the most robust, topologically protected conductor metal that anybody has discovered -- it is taking us to a new frontier."

Topologically protected means that some of the material's properties are reliably constant even if the material is not perfect. That quality also bolsters the future possibility of practical applications and manufacturability for these types of materials.

Ilya Belopolski, a Princeton researcher who participated in both the theory and experimental work, noted that a particularly interesting property of the studied crystals -- which included cobalt-silicon and rhodium-silicon crystals -- is that they can produce an electrical current of a fixed strength when you shine a light on them.

"Our previous theories showed that -- based on the material's electronic properties that we have now observed -- the current would be fixed at specific values," he said. "It doesn't matter how big the sample is, or if it's dirty. It is a universal value. That's amazing. For applications, the performance will be the same."

In previous experiments at the ALS, Hasan's team had revealed the existence of a type of massless quasiparticles known as Weyl fermions, which had only been known to exist in theory for about 85 years.


The Weyl fermions, which were observed in synthetic crystals of a semimetal called tantalum arsenide, exhibit some similar electronic properties to those found in the crystals used in the latest study, but lacked their chiral traits. Semimetals are materials that have some metal and some non-metal properties.

Wednesday 6 March 2019

आग की लपटें हमेंशा ऊपर की तरफ ही क्यों उठती हैं? उनपर गुरुत्वाकर्षण बल का कोई असर क्यों नहीं होता है?

ऐसा तीन वजहों से होता है ।
  1. तापमान
  2. घनत्व
  3. गुरुत्वाकर्षण बल
अग्नि की ज्वाला गैसों का मिश्रण है जो कि अत्यधिक गर्म होने के कारण दृश्यमान है , जैसे लोहा गर्म होने पर दृश्यमान होता है ।
अगर पानी में आप लकड़ी या प्लास्टिक डाल दे तो वह उत्प्लावन बल के प्रभाव से तैरेगी अर्थात पानी के ऊपर रहेगी क्योंकि उसका घनत्व पानी के घनत्व से कम है और वह अपने वजन के बराबर पानी हटा देती है।
वही पत्थर डूब जाता है क्योंकि उसका घनत्व पानी से ज्यादा होता है और वह अपने वजन के बराबर पानी नही हटा पाता ।
यही उत्प्लावन बल का सिद्धांत अग्नि की ज्वाला पर भी काम करता है । अग्नि की ज्वाला के आस पास की गैसें गर्म होती है और हम सब जानते हैं कि गर्म गैसें हवा से हल्की होती है अर्थात उनका घनत्व हवा के घनत्व से कम होता है ।
( क्योंकि जब हवा गर्म होती है तब उनके अणुओं की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है और उस वजह से उनके अणु दूर दूर हो जाते हैं इसलिए उनका घनत्व कम हो जाता है)
ये गैसें अपने स्वभाववश ऊपर उठती हैं और जब ज्वाला के आस पास की गैसें ऊपर उठती हैं तो अग्नि की ज्वाला भी ऊपर की ओर उठ जाती है । जब ज्वाला के पास की गैसें ऊपर चली जाती हैं तो गुरुत्वाकर्षण के कारण आस पड़ोस की ठंडी गैसें उस खाली जगह को भरने के लिए तेज़ी से आती हैं और इससे ज्वाला पतली और ऊपर की और तेजी से जलती है ।

आपको जानकर हैरानी होगी कि यदि नगण्य गुरुत्वाकर्षण में ज्वाला का अवलोकन किया जाए तो वह एक गोलक के रूप में होती हैं


जैसा कि चित्र में आप देख रहे हैं , ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वहां घनत्व का सिद्धांत काम नही करता और ज्वाला पर उत्प्लावन बल नही लगता।


वायु में किसी वस्तु की स्थिति पता करने के लिए राडार जबकि समुद्र में वस्तु की स्थिति पता करने के लिए सोनार का प्रयोग किया जाता है। ऐसा क्यों?

राडार रेडियो की तरंगो से काम करता है। रेडियो की तरंगों को वायु में भेजते हैं और अगर किसी चीज से टकराकर वापस आ गयी तो उस चीज का अकार मालुम पड़ जाता है।



राडार माइक्रोवेव की फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करता है।  माइक्रोवेव की फ्रीक्वेंसी 300 GHz – 300 MHz होती है और इसकी तरंग दैर्ध्य १ मीटर से १ मिलीमीटर तक की होती है।
पानी में इसका इस्तेमाल क्यों नहीं करते: ऐसा इसलिए है क्योंकि पानी में इन तरंगो का अवशोषण हो जाता है। इसकी तरंग दैर्ध्य है जो पानी में बहुत आसानी से अवशोषित हो जाती हैं। सोनार ध्वनि के तरंगो से चलता है और इसका पानी के अंदर अवशोषण नहीं होता।
यही वजह है की राडार का प्रयोग पानी में नहीं सकते।

आकाशीय बिजली की पेड़ पर गिरने की संभावना सबसे अधिक क्यों होती है?

चलिए पहले यह देखते हैं की आकाशीय बिजली कैसे काम करती है।
जब आंधी या तूफ़ान आता है तो हवा के बहाव के कारण बादलों में सकारात्मक (positive) और नकारात्मक (negative) चार्ज अलग हो जाते हैं।
नेगेटिव चार्ज बादल के नीचे वाले हिस्से में होता है और पॉजिटिव चार्ज इसके ऊपर वाले हिस्से में।
ठीक ऐसे जैसे की दिखाया गया है :

जब ऐसा हो रहा है ठीक उसी समय आंधी के नीचे जमीन पर पॉजिटिव चार्ज बनने शुरू हो जाते हैं।
जैसा की हमको मालूम है की एक ही तरह के चार्ज एक दूसरे से दूर जाते हैं और बिपरीत चार्ज एक दूसरे के समीप आते हैं , नेगेटिव वाले चार्ज बादल के नीचे फैलना शुरू कर देते हैं और नीचे से पॉजिटिव चार्ज जमीन के ऊपर फैलना शुरू कर देते हैं।
तो चीज ऊंचाई पर होती है जैसे की बिल्डिंग या पेड़ तो उसपर पॉजिटिव चार्ज रहते हैं और वह बादल के नजदीक होता है।
जब पॉजिटिव और नेगेटिव चार्ज एक दूसरे से मिलते हैं तो नेगेटिव चार्ज डिस्चार्ज होकर धरती में आते हैं जिसको आप आकाशीय बिजली के नाम से जानते हैं। 


जो चीज़ सब अधिक उचाई पर होती है उसमे डिस्चार्ज होने की सबसे ज्यादा वजह होती है।
जैसे की यह टावर जिसमे पॉजिटिव चार्ज है और बादल में नेगेटिव।

९५% आकाशीय बिजली में यही होता है लेकिन ५% में पॉजिटिव चार्ज, नेगेटिव चार्ज में डिस्चार्ज होता है।
चूँकि पेड़ जमीन से ऊपर होते हैं इसीलिए उसमे डिस्चार्ज होने की संभावना अधिक होती है।
यही वजह है।

जब हम चिल्ला कर बोलते हैं तो हमारी आवाज दूर बैठे व्यक्ति को सुनाई देती हैं, क्या आवाज की इस गति को मापा जा सकता हैं, फिर हमारी आवाज गायब कहाँ हो जाती हैं?

अत्यंत ही सरल है।
अपने किसी दोस्त को माप कर खुद से 100 मीटर से अधिक कोई भी मापी हुई दूरी पर खड़ा करें।
उसके एक हाथ में लोहे की थाली , दूसरे में हथौड़ा दें। वो आपके इशारे पे थाली में हथौड़ा मारेगा।
जैसे ही वो हथौड़ा मारता दिखता है , स्टॉप वाच चला दें। और आपको जब आवाज़ सुनाई दे तो स्टॉप वाच बंद कर दें। स्टॉप वाच में समय अंतराल देखें। .3 सेकण्ड के आसपास होगा।
मान ले दूरी 110 मीटर है और समय .32 सेकंड तो आवाज़ की गति हुई
दूरी/समय = 110/.32 = 343 मीटर प्रति सेकंड
आवाज़ गायब क्यों होती है ?
आवाज़ एक प्रेशर वेव है और हवा में फैलने के लिए इसे हवा के कण को आगे पीछे vibrate करना पड़ता है, जिसमें एनर्जी लगता है , जो हकीकत में गतीय ऊर्जा में रूपांतर है । आवाज़ जैसे जैसे फैलती है उतने बड़े एरिया में उतने ज्यादा कण को हिलाना पड़ता और उतना ही ज्यादा एनर्जी लगता है - इस तरह धीरे धीरे निकली हुई आवाज़ का सारा एनर्जी खत्म हो जाता है और आवाज़ आनी बंद हो जाती है।
इसे चित्रवत यूँ समझें

क्यों कुछ लोगों को किसी चीज़ से एलर्जी होती है जबकि कुछ को नहीं?



एलर्जी को समझने के लिये, प्रतिरक्षा विज्ञान (इम्यूनोलॉजी) को जानना जरूरी है, जिसमें सभी प्रतिरक्षा तंत्रों का अध्ययन किया जाता है। ये तंत्र अनेक हैं और अत्यंत जटिल हैं। अतः अभी तक इस संबंध में बहुत अच्छी जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है। प्रतिरक्षा प्रणाली के कई घटक आमतौर पर प्रकृति में सेलुलर होते हैं और किसी विशिष्ट अंग से जुड़े नहीं होते हैं; बल्कि पूरे शरीर में स्थित विभिन्न ऊतकों में एम्बेडेड या परिसंचारी होते हैं।
अलग-अलग व्यक्तियों में बिल्कुल भिन्न प्रकार से ये तंत्र कार्य करते हैं। एंटीजन और एंटीबॉडी रियेक्शन सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अक्सर कोई बाहर से आया रसायन, जैसे भोजन या कीटाणु की प्रोटीन, एंटीजन होती है, जिसे शत्रु समझकर प्रतिरक्षा तंत्र लड़ने के लिये एंटीबॉडी की फौज खड़ी करता है। यह प्रक्रिया शरीर के बचाव के लिये है।
लेकिन कभी प्रतिरक्षा तंत्र किसी छोटे से शत्रु को बड़ा आतंकवादी मानकर भयंकर हमला कर देता है। बचाव की इस अतिशय कोशिश में अपने ही नागरिक ज्यादा मारे जाते हैं। ऐसा समझिये कि मच्छर या मक्खी मारने के लिये कोई परमाणु बम फोड़ दे। खुद का ही अधिक नुकसान हो जायेगा। इस तरह की इम्यूनोलॉजिकल दुर्घटना हाईपरसेंसिटिविटी, या सामान्य भाषा में कहें तो एलर्जी के रूप में प्रगट होती है।
कभी-कभी भूलवश प्रतिरक्षा तंत्र अपने ही शरीर के किसी पदार्थ को दुश्मन मानकर उससे युद्ध करने के लिए एंटीबॉडी की सेना भेज देता है। तब आंतरिक हाईपरसेंसिटिविटी से आटो-इम्यून रोग पैदा होते हैं।
किसी व्यक्ति में ऐसा क्यों होता है? सबमें क्यों नहीं होता?
आनुवांशिक गुणों की भूमिका नजर आती है फिर भी यह प्रश्न काफी हद तक अनुत्तरित है। इसी वजह से एलर्जी का सटीक इलाज एक सीमा तक ही हो पाता है। आशा है कि इस दिशा में चल रहे नये अनुसंधान भविष्य में अवश्य रोशनी करेंगे। रूसी जीवविज्ञानी इल्या इलिच मेखनिकोव ने प्रतिरक्षा विज्ञान पर अध्ययन को बढ़ाया और उन्हें इस कार्य के लिए 1908 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। चिकित्सा विज्ञान की यह शाखा अभी नवजात शिशु ही है।

पक्षियों को बिजली के तार पर बैठने पर करंट क्यों नहीं लगता है?

पक्षियों को बिजली के तार पर बैठने से करंट नहीं लगता है, इसे समझने के लिए आइये पहले विद्युत् प्रवाह को समझते है |
विद्युत् का प्रवाह चालक के अंदर, इलेक्ट्रॉन्स के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण के कारण होता है जिसका अर्थ है कि जब इलेक्ट्रॉन्स, चालक के अंदर, एक स्थान से दूसरे स्थान की और गति करते हैं तो इससे विद्युत् का प्रवाह होता है|
बिजली के तार कॉपर(ताँबे) के बने होते हैं, जो कि (ताँबा)विद्युत् का सबसे अच्छा चालक होता है| अच्छा चालक होने का अर्थ है जो विद्युत् के प्रवाह में कम से कम प्रतिरोध उत्पन्न करे | चूँकि ताँबे का तार विद्युत् के प्रवाह में कम प्रतिरोध उत्पन्न करता है,इसलिए बिजली को अपने अंदर आसानी से बहने में मदद करता है |
विद्युत् के प्रवाह का नियम है कि यदि विद्युत् प्रवाह होने के दो पथ उपलब्ध हैं, तो विद्युत् का प्रवाह कम प्रतिरोध वाले पथ से होकर गुजरेगा, और बस यही नियम पक्षियों को अपनी जान को नुकसान पहुँचाये बिना तारों पर बैठे रहने में मदद करता है|
देखिये जब पक्षी तारों पर बैठते हैं उस समय विद्युत् के प्रवाह के लिए दो पथ तैयार रहते हैं एक कॉपर(ताँबे) का तार जिससे विद्युत् पहले से ही प्रवाहित रही है तथा दूसरा पक्षी का शरीर, चूँकि पक्षी के शरीर की कोशिकाये एवं ऊतक, ताँबे की तार की तुलना में ज्यादा प्रतिरोध उत्पन्न करते हैं तो विद्युत् का प्रवाह ताँबे के तार से ही बना रहता है |
दूसरा एक और बड़ा कारण है कि विद्युत् का प्रवाह अधिक वोल्टेज(विद्युत् दाब) वाले क्षेत्र से कम वोल्टेज(विद्युत् दाब) वाले क्षेत्र की और होता है जिसका अर्थ है कि वोल्टेज में अंतर| चूँकि पक्षी का पूरा शरीर एक ही तार पर होता है जिससे की वोल्टेज में कोई अंतर मौजूद नहीं होता है और इसके कारण विद्युत् का प्रवाह उनके शरीर से नहीं होता है|
यदि वही पक्षी अपने एक पैर को एक तार पर तथा दूसरे पैर को दूसरे तार पर या जमीं पर रख दे तो तुरंत वोल्टेज में अंतर पैदा हो जायेगा और विद्युत् धारा अधिक वोल्टेज क्षेत्र( विद्युत् के एक तार) से कम वोल्टेज क्षेत्र (विद्युत् के दूसरे तार या धरती(शुन्य विद्युत् क्षेत्र)) की और बहना शुरू हो जाएगी और पक्षी करंट लगने की वजह से अपनी जान गवां बैठेगा |

यदि एक व्यक्ति छत के किनारे पर बैठा हो और हवा चल रही हो तो क्या हवा उस व्यक्ति को गिरा सकती? यदि हां तो हवा की गति कितनी होनी चाहिए अौर क्या शहरों मे ऐसी तेज हवाओं का चलना संभव है?

ये हम सब जानते हैंं कि हवा हमें छत के किनारे पर बैठे होने पर गिरा सकती है। लेकिन कितनी तेज हवा हमें गिरा सकती है?


देखिये ये कई बातों पर निर्भर करता है जैसे कि व्यक्ति का भार कितना है, उसके बैठने का अंदाज, वह कितना मोटा या पतला है। इसलिए प्रश्न की ऐसी गणना करना जो सभी के लिए लागू हो सम्भव नही। इसलिए मैं कुछ चीजें मान लेता हूँ जो किसी औसत इंसान जो किनारे पर बैठा होगा उसके लिए लागू होंगी। जैसे कि -
  • हम ये नहींं मानते कि व्यक्ति का भार कितना है लेकिन ये मानते हैंं कि किसी व्यक्ति पर अगर 20 किलो का द्रव्यमान साइड से लगाया जाता है तो वह आराम से गिर जाएगा।
  • हम मानते हैंं कि व्यक्ति बिल्कुल सीधा बैठा है। जिससे हवा सीधे उसके शरीर को लगती है। हवा के संपर्क में आने वाले शरीर का क्षेत्रफल 0.5 m^2 है।
इस तरह हवा द्वारा शरीर पर लगाया गया बल -
F=12ρV2A
mg=12ρV2A
यहाँ, m = 20 किलोग्राम
गुरुत्व नियतांक g = 9.81 m/s^2
हवा का घनत्व ρ = 1.2 kg/m^3
हवा की गति V = ?
हवा के सम्पर्क का क्षेत्र = 0.5 m^2
इसीलिए,
20×9.81=12×1.2×V2×0.5
V2=20×9.81×21.2×0.5
V = 25.52 मीटर प्रति सेकंड
इसका अर्थ है, अगर आप बिना किसी सहारे छत की किनारी पर बैठे हो तो 25 मीटर प्रति सेकंड की हवा आपको गिरा सकती है। यह शहरों में भी सम्भव है।
इसका ज्यादा सटीक जवाब  सिमुलेशन के द्वारा निकाल कर जोड़ जाये तो बेहतर होगा ..

रेफ्रीजिरेटर का बर्फ बाजार से लाये बर्फ की तुलना में जल्दी पिघल जाता हैं, क्यों

ये एक बहुत अच्छा प्रश्न है और कमाल की बात है आपने ये नोटिस भी किया।
ज्यादातर लोगों को ये बात बिल्कुल नयी लगी होगी कि हमारे रेफ्रिजरेटर की बर्फ, बाजार की बर्फ से जल्दी पिघल सकती है।
क्या ऐसा होता है, यदि हां तो इसका क्या कारण है ?
जी हां!! ऐसा भी होता है कि दो समान आकार के बर्फ के ब्लॉक (अलग तरीके से जमाये गए) एक ही वातावरण की उपस्थिति में अलग अलग समय पर पिघलते है। लेकिन ऐसा नही है कि घर के रेफ्रिजरेटर की बर्फ हमेसा ही बाजार की फैक्ट्री वाली बर्फ से पहले पिघलती हो। इसका ठीक उल्टा भी हो सकता है।
यदि आपके साथ ऐसा हमेसा ही होता है तो इसका मुख्य कारण हो सकता है कि आप बोरिंग का पानी (कठोर जल) सीधे ही बर्फ जमाने में उपयोग करते है। जिससे जो बर्फ जमती है वो कुछ इस तरह की दिखती होगी -

जबकि जो बर्फ आप बाजार से लाये होंगे वो कुछ ऐसी दिखती होगी -

दोनों में अंतर आप आसानी से देख सकते है कि एक कुछ सफेद जबकि दूसरी बिल्कुल साफ़ है।
इसका कारण है, यदि हम कठोर जल को बिना साफ किये बर्फ बनाते है तो उसमें घुली हुई अशुद्धियां जैसे कैल्शियम और हवा एक साथ एकत्रित हो जाते है। जबकि फैक्ट्री वाली बर्फ में मांग रहती है कि बर्फ बिल्कुल साफ होनी चाहिए इसलिए वहां पानी को साफ करने के लिए केमिकल्स का उपयोग किया जाता है।
चूंकि सफेद बर्फ में मिली अशुद्धि और हवा के कारण उसका डीयू पॉइंट (Dew Point) कम हो जाता है इसलिए वह जल्दी पिघलती है। आप कभी पानी को उबालकर बर्फ जमाना तब वह भी बिल्कुल साफ बनेगी।
फुटनोट

पानी का घनत्व 4℃ पर ही सबसे ज़्यादा क्यों होता है? तापमान कम होने पर घनत्व क्यों नही बढ़ता?

ये पानी की विशेषता है कि उसका अधिकतम घनत्व 4 डिग्री सेंटीग्रेड पर मिलता है। ऐसा पानी के मॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर के कारण होता है। इसे समझने से पहले जिन्हें नही पता उनके लिए थोड़ा सा बेसिक समझ लेते है। जिन्हें नही पता घनत्व क्या होता है तो यह किसी भी पदार्थ के द्रव्यमान और उसके आयतन का अनुपात है। कम घनत्व वाले पदार्थ ज्यादा घनत्व वाले पदार्थ के ऊपर तैरते है क्योंकि वह उनसे हल्के होते है।
अब जरा नीचे दिए चित्र को देखिये -

इस चित्र में आप देख सकते है कि गर्म पानी, ठन्डे पानी से कम घनत्व का होने के कारण ऊपर तैरता है। ऐसा सभी पदार्थो के साथ होता है क्योकि गर्मी के साथ मोलेक्युल्स दूर जाने लगते है जिससे वह पदार्थ हल्का हो जाता है। साथ ही ठंड के साथ मॉलिक्यूल पास आते है और घनत्व बढ़ जाता है।
लेकिन पानी के साथ हमे एक बहुत अजीब पैटर्न देखने को मिलता है। ठंडा पानी, गर्म पानी से तो ज्यादा भारी होता है लेकिन उसे और ठंडा करने पर (बर्फ) वह गर्म पानी पर तैरने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योकि तापमान ठीक ४ डिग्री से कम करने पर पानी का घनत्व अचानक से घटता है।

ये पानी की एक बहुत जरूरी विशेषता है। यदि ऐसा नहीं होता तो समुद्र में बर्फ नीचे से जमना शुरू करती और सारे जीव मरने लगते।
पानी का ये अजीब ब्यवहार उसके मॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर के कारण होता है और इसे आप आसानी से समझ सकते है। हमे बस ध्यान देना की बर्फ का मॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर कैसा होता है। इसे आप नीचे चित्र में देख सकते है

जैसा की आप देख सकते बर्फ के स्ट्रक्चर में मोलेक्युल्स के बीच बहुत सारा खाली स्पेस होता है। जब मॉलिक्यूल इतनी दूरी पर सेट होंगे जो जाहिर सी बात है। इससे बर्फ भी हल्की होगी। अब जब हम बर्फ को गर्म करना शुरू करते है तो इससे मोलेक्यूलर स्ट्रक्चर टूट जाता है। हम जानते है पानी के मॉलिक्यूल एक दूसरे की तरफ आकर्षित होते है इसलिए जैसे ही मॉलिक्यूलर स्ट्रक्चर टूटता है। सारे मोलेक्यूल एक दूसरे के पास आने लगते है। जब मॉलिक्यूल पास पास होंगे तो इससे पानी का घनत्व भी बढ़ेगा क्योकि उसका द्रवमान तो समान है लेकिन आयतन कम हो गया।
लेकिन ये मॉलिक्यूल कुछ देर तक ही साथ रह पाते है क्योकि जैसे - जैसे तापमान बढ़ता जाता है उनकी गतिज ऊर्जा भी बढ़ती जाती है। जब तापमान ४ डिग्री पार करता है तो मोलेक्युल्स में इतनी गतिज ऊर्जा हो जाती है की उन्हें आकर्षण बल उन्हें रोक नहीं पाता, जिससे मोलेक्युल्स दूर जाने लगते है। इससे उनका घनत्व कम होने लगेगा क्योकि आयतन बढ़ गया है।
मुझे उम्मीद है आपको समझ आया होगा। यह उष्मागतिकी (Thermodynamics) के पियूर सस्टेन्ट्स विषय का हिस्सा है




Awesome Particle Physics Facts In Hindi

इंसानी दिमाग अपनी बुद्धि के जरिए बहुत कुछ खोज कर निकाल सकता है। प्राचीन काल से ले कर आज तक वह अपने बुद्धि-कौशल के जरिए तरह-तरह के अत्याधुन...