पक्षियों को बिजली के तार पर बैठने से करंट नहीं लगता है, इसे समझने के लिए आइये पहले विद्युत् प्रवाह को समझते है |
विद्युत् का प्रवाह चालक के अंदर, इलेक्ट्रॉन्स के एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण के कारण होता है जिसका अर्थ है कि जब इलेक्ट्रॉन्स, चालक के अंदर, एक स्थान से दूसरे स्थान की और गति करते हैं तो इससे विद्युत् का प्रवाह होता है|
बिजली के तार कॉपर(ताँबे) के बने होते हैं, जो कि (ताँबा)विद्युत् का सबसे अच्छा चालक होता है| अच्छा चालक होने का अर्थ है जो विद्युत् के प्रवाह में कम से कम प्रतिरोध उत्पन्न करे | चूँकि ताँबे का तार विद्युत् के प्रवाह में कम प्रतिरोध उत्पन्न करता है,इसलिए बिजली को अपने अंदर आसानी से बहने में मदद करता है |
विद्युत् के प्रवाह का नियम है कि यदि विद्युत् प्रवाह होने के दो पथ उपलब्ध हैं, तो विद्युत् का प्रवाह कम प्रतिरोध वाले पथ से होकर गुजरेगा, और बस यही नियम पक्षियों को अपनी जान को नुकसान पहुँचाये बिना तारों पर बैठे रहने में मदद करता है|
देखिये जब पक्षी तारों पर बैठते हैं उस समय विद्युत् के प्रवाह के लिए दो पथ तैयार रहते हैं एक कॉपर(ताँबे) का तार जिससे विद्युत् पहले से ही प्रवाहित रही है तथा दूसरा पक्षी का शरीर, चूँकि पक्षी के शरीर की कोशिकाये एवं ऊतक, ताँबे की तार की तुलना में ज्यादा प्रतिरोध उत्पन्न करते हैं तो विद्युत् का प्रवाह ताँबे के तार से ही बना रहता है |
दूसरा एक और बड़ा कारण है कि विद्युत् का प्रवाह अधिक वोल्टेज(विद्युत् दाब) वाले क्षेत्र से कम वोल्टेज(विद्युत् दाब) वाले क्षेत्र की और होता है जिसका अर्थ है कि वोल्टेज में अंतर| चूँकि पक्षी का पूरा शरीर एक ही तार पर होता है जिससे की वोल्टेज में कोई अंतर मौजूद नहीं होता है और इसके कारण विद्युत् का प्रवाह उनके शरीर से नहीं होता है|
यदि वही पक्षी अपने एक पैर को एक तार पर तथा दूसरे पैर को दूसरे तार पर या जमीं पर रख दे तो तुरंत वोल्टेज में अंतर पैदा हो जायेगा और विद्युत् धारा अधिक वोल्टेज क्षेत्र( विद्युत् के एक तार) से कम वोल्टेज क्षेत्र (विद्युत् के दूसरे तार या धरती(शुन्य विद्युत् क्षेत्र)) की और बहना शुरू हो जाएगी और पक्षी करंट लगने की वजह से अपनी जान गवां बैठेगा |
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