Sunday, 3 March 2019

गुरुत्वाकर्षण हर जगह क्यों फैला हुआ है?

यह बहुत ही रोचक सवाल है! और सच बताऊँ तो कई शिक्षक इस तरह के सवालों से बचते हैं। वो इस सवाल का उत्तर देते हैं:

“अब फैला है तो है! यहाँ ‘क्यों’ से क्या मतलब?”

बेचारा विद्यार्थी अपनी जिज्ञासा मार कर बैठ जाता है।

लेकिन इस विषय को समझने के लिए हम एक अनुरूपता (एनलॉजी) का प्रयोग करेंगे:

मान लीजिए कि सम्पूर्ण ब्राह्मण एक कपड़े की चादर है। आप कल्पना कर सकते हैं कि हम उस चादर पर चल रहे कीड़े के समान हैं। अब कोई भी चीज़ उस चादर पर रखी होगी तो वो उसे थोड़ा सा दबाएगी। कुछ ऐसे:


अब इसी दबाने को भौतिकविज्ञानी स्पेस टाइम करवेचर कहते हैं। और आधुनिक भौतिकी विज्ञान के अनुसार यही गुरुत्वाकर्षण है।

आप उस चादर पर एक बड़ी गेंद और एक छोटी गेंद रख दें। क्योंकि बड़ी गेंद चादर को ज़्यादा दबाएगी, तो उसके चारों और ज़्यादा बड़ा गड्ढा होगा। अब आप उस छोटी गेंद को बड़ी गेंद के चारों ओर ढुनकाएंगे तो वो बड़ी गेंद के चक्कर लगाने लगेगी।
बस यही होता है गुरुत्वाकर्षण। इसी तरह चंद्रमा पृथ्वी का, पृथ्वी सूर्य का एवं बाकि सारे खगोलीय पिंड एक दूसरे का चक्कर लगाते हैं। अब लेकिन सवाल ये उठता है कि गुरुत्वाकर्षण हर जगह क्यों होता है?

इसका उत्तर ये है कि क्योंकि ब्रह्माण्ड में हर जगह तारे, ग्रह एवं कई खगोलीय पिंड हैं, तो गुरुत्वाकर्षण का हर जगह प्रभाव दिखता है। गुरुत्वाकर्षण और कुछ नहीं बल्कि स्थान-काल (स्पेस-टाइम) का चादर की तरह दबना है। और क्योंकि ब्रह्माण्ड रुपी चादर में कई सारे पिंड हैं, अतः उनकी वजह से बने गड्ढे (जो कि गुरुत्वाकर्षण है) हर जगह महसूस होते हैं।

बस इसीलिए गुरुत्वाकर्षण हर जगह फैला है।


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