इसका कारण छुपा हैं हमारे कानो में,
नेत्र हमारे मस्तिष्क को सिधी रिपोर्ट भेजते हैं कि हम क्या कर रहे हैं और जो हम कर रहे हैं उसके बाद क्या कुछ घटित होने कि सम्भावना हैं जैसे जब हम हथौड़ी से पत्थर तोडते हैं तो स्वयं आखें बन्द हो जाती हैं ताकि आखं में कुछ वस्तु ना गिर जायें. इस ही प्रकार शरीर सदैव आखों के द्वारा भेजे गये डाटा से हमें मोनिटर करता रहता हैं।
फिर आती हैं हमारी मासंपेशिया जो तन्त्रिकां तन्त्र के साथ काम कर हमारे मुवमेंट को ट्रैक करती हैं
इन दोनो पक्षों के सिवा एक तिसरा पक्ष भी हैं जो बडे मजेदार ढगं से हमारे मुवंमेट को ट्रैक करता हैं हमरा कान।
हमारे कान के आन्तरिक भाग में एक खास तरह का द्रव्य भरा होता हैं
जब हम गति में होते हैं तो ये द्रव्य भी भौतिकी के नियमानुसार गति करता हैं और हमारा मस्तिष्क इस तरल द्रव्य के मुवमेंट के अधार पर यह तय करता हैं कि हम किस अवस्था में हैं और अब शरीर को कौन सी प्रतिक्रिया देनी हैं
शरीर को जब हम समान्य परिस्थितियों से हटकर किसी अन्य अवस्था में रखते हैं तब शरीर का अलग अलग विभाग जैसे नेत्र, मासपेशिया, कान का द्रव्य मस्तिष्क को अलग अलग डाटा भेजते हैं जो क्योंकि शरीर के सभी अंगो का व्यवहार समान नहीं होता तब शरीर अपातकालीन बचाव प्रक्रिया पर चलता हैं
गोल गोल घुम कर अचानक से रूक जाना भी एक ऐसी ही स्थिति हैं।
जब हम गोल गोल घुमते हैं तब हमारे कान के भीतर मौजूद तरल भी अपकेन्द्र बल के कारण और कुछ आन्तरिक हलचल के कारण घुमने लगता हैं जब हम अचानक से रूक जाते हैं
तब शरीर तो स्थिर रहता हैं किन्तु जडत्व के नियम के कारण कान के भीतर मौजूद तरल गति में बना रहता हैं कान का तरल क्योंकि वृत्तिय गति में हैं इस कारण दिमाग शरीर को वृत्तिय गति के अनुसार ही व्यवहार करने का सदेशं भेजता हैं तब हम स्वयं को सम्भाल नही पाते और गिर पडते हैं
हम में से अधिकांश लोग इस कान के तरल के कारण ही कुछ मुख्य समस्याओं से जुझते हैं जिनमें से दो का उल्लेख में यहां करूगां
ऐसा अनेक बार होता होगा जब आप लेटे हुयें हों और अचानक से उठ जाये तब आपको अपना सर तुरंत ही थोडा भारी महसूस होता होगां, इस का कारण भी कान का तरल द्रव ही हैं
आपके अचानक से गतिमान होने पर कान का तरल जडत्व के कारण कुछ समय तक स्थिर रहता हैं और परिणामस्वरूप मस्तिष्क प्रितिक्रिया देता हैं और आपका सर कुण क्षण के लिऐ भारी सा हो जाता हैं
मनुष्य का शरीर एक बयोलोजिकल रोबोट हैं जिसमें एक प्रकार के बायों सेंसर लगे हैं जो हमारी हर गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं बायों सेंसर से मेरा अर्थ मानव शरीर के उन अंंगो से हैं जो भौतिकी के नियमानुसार कार्य करते हैं
अब सिधा आपके प्रशन पर आता हूँ
मानव शरीर गति कर रहा हैं इसका पता हमारे मस्तिष्क को कैसे चलता हैं? इसका पता हमारे दिमाग को तीन तरह से चलता हैं प्रथम होती है हमारे नेत्र.
नेत्र हमारे मस्तिष्क को सिधी रिपोर्ट भेजते हैं कि हम क्या कर रहे हैं और जो हम कर रहे हैं उसके बाद क्या कुछ घटित होने कि सम्भावना हैं जैसे जब हम हथौड़ी से पत्थर तोडते हैं तो स्वयं आखें बन्द हो जाती हैं ताकि आखं में कुछ वस्तु ना गिर जायें. इस ही प्रकार शरीर सदैव आखों के द्वारा भेजे गये डाटा से हमें मोनिटर करता रहता हैं।
फिर आती हैं हमारी मासंपेशिया जो तन्त्रिकां तन्त्र के साथ काम कर हमारे मुवमेंट को ट्रैक करती हैं
इन दोनो पक्षों के सिवा एक तिसरा पक्ष भी हैं जो बडे मजेदार ढगं से हमारे मुवंमेट को ट्रैक करता हैं हमरा कान।
हमारे कान के आन्तरिक भाग में एक खास तरह का द्रव्य भरा होता हैं
जब हम गति में होते हैं तो ये द्रव्य भी भौतिकी के नियमानुसार गति करता हैं और हमारा मस्तिष्क इस तरल द्रव्य के मुवमेंट के अधार पर यह तय करता हैं कि हम किस अवस्था में हैं और अब शरीर को कौन सी प्रतिक्रिया देनी हैं
शरीर को जब हम समान्य परिस्थितियों से हटकर किसी अन्य अवस्था में रखते हैं तब शरीर का अलग अलग विभाग जैसे नेत्र, मासपेशिया, कान का द्रव्य मस्तिष्क को अलग अलग डाटा भेजते हैं जो क्योंकि शरीर के सभी अंगो का व्यवहार समान नहीं होता तब शरीर अपातकालीन बचाव प्रक्रिया पर चलता हैं
गोल गोल घुम कर अचानक से रूक जाना भी एक ऐसी ही स्थिति हैं।
जब हम गोल गोल घुमते हैं तब हमारे कान के भीतर मौजूद तरल भी अपकेन्द्र बल के कारण और कुछ आन्तरिक हलचल के कारण घुमने लगता हैं जब हम अचानक से रूक जाते हैं
तब शरीर तो स्थिर रहता हैं किन्तु जडत्व के नियम के कारण कान के भीतर मौजूद तरल गति में बना रहता हैं कान का तरल क्योंकि वृत्तिय गति में हैं इस कारण दिमाग शरीर को वृत्तिय गति के अनुसार ही व्यवहार करने का सदेशं भेजता हैं तब हम स्वयं को सम्भाल नही पाते और गिर पडते हैं
हम में से अधिकांश लोग इस कान के तरल के कारण ही कुछ मुख्य समस्याओं से जुझते हैं जिनमें से दो का उल्लेख में यहां करूगां
ऐसा अनेक बार होता होगा जब आप लेटे हुयें हों और अचानक से उठ जाये तब आपको अपना सर तुरंत ही थोडा भारी महसूस होता होगां, इस का कारण भी कान का तरल द्रव ही हैं
आपके अचानक से गतिमान होने पर कान का तरल जडत्व के कारण कुछ समय तक स्थिर रहता हैं और परिणामस्वरूप मस्तिष्क प्रितिक्रिया देता हैं और आपका सर कुण क्षण के लिऐ भारी सा हो जाता हैं
Source
No comments:
Post a Comment