Sunday, 3 March 2019

अगर ऊर्जा न बनाई जा सकती है अौर न नष्ट की जा सकती है तो उसका अस्तित्व कैसे है?

उष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुसार “हम ऊर्जा को न तो उत्तपन्न सकते है और न ही नष्ट कर सकते है केवल उसका स्वरूप बदला जा सकता है।”

मतलब कि हमारे ब्रह्मांड की जितनी भी ऊर्जा है उसकी मात्रा हमेशा नियत रहती है। इसके अलावा हमारा ब्रह्मांड एक Isolated system (आइसोलेटेड सिस्टम ) है मतलब कि न तो उसकी उपस्थित ऊर्जा ब्रह्मांड से बाहर जा सकती है और न बाहर से ब्रह्मांड में प्रवेश कर सकती है।

अब जब हम केवल ऊर्जा का स्वरुप बदल सकते है तो सवाल बनता है कि सबसे पहले यह ऊर्जा आयी कहांं से जिसका हम स्वरूप बदल रहे हैंं?

इसका सही जवाब है - किसी को नहींं पता।

कुछ वैज्ञानिको का कहना कि ब्रह्मांड के निर्माण के समय द्रब्यमान के बदलने से बहुत सारी ऊर्जा निकली थी। यह वही ऊर्जा है। लेकिन इस बात का कोई प्रमाण नही है। और प्रैक्टिकल रूप से बिग बैंग में यह सम्भव भी नही।

इस तरह के प्रश्न उन वैज्ञानिकों का साथ देते है, जो विज्ञान के साथ ईश्वर पर कड़ी आस्था रखते है। वो इसे ईश्वर के द्वारा दी गयी ऊर्जा का हिस्सा मान लेते है। लेकिन एक नास्तिक वैज्ञानिक के लिए यह उसी प्रकार का प्रश्न है जिसका जवाब देना संभव नही।

जिस तरह विज्ञान हमको जीवन में आये प्रत्येक परिवर्तन को तो बताता है लेकिन यह नही बताता कि यह जीवन कहाँ से आया ठीक उसी प्रकार विज्ञान ऊर्जा के परिवर्तन को बता सकता है लेकिन ये कहांं से आई इसका जवाब नहींं देता।

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