चलिऐ पहले इस बिन्दु पर चर्चा करते हैं कि पृथ्वी की सतह से कितने ऊपर कोई वस्तु गुरूत्वाकर्षण बल का अनुभव करेगी।
जैसे कि हम सभी जानते हैं कि प्रत्येक दो वस्तु एक दुसरे को अपनी और खीचती हैं और रोचक बात यह हैं कि ये बल कभी शुन्य नहीं होता, अगर आप बोल को 10,000 प्रकाश वर्ष दुर भी रख दें तब भी पृथ्वी अपने आकर्षण से ऊसे अपनी और खीचं लेगीं(हमने कल्पना कि हैं कि पुरे ब्रह्मांड में केवल पृथ्वी हैं)
किसी वस्तु पर कितना आकर्षण बल कार्य करेगा इसकी व्यख्या न्युटन ने कि थी और यह सुत्र कुछ इस प्रकार हैं
जहाँ M पृथ्वी का द्रव्यमान और m वस्तु का द्रव्यमान हैं r इनकी बीच की दुरी हैं
क्या आप ने कुछ नोटिस किया?
इस सुत्र को आप कितनी भी दुरी के लिऐ प्रयोग कर सकते हैं और क्योंकि ब्राह्मण्ड का अकार परिमीत हैं इस कारण आप पुरे ब्राह्मण्ड में वस्तु को कहीं भी रख दें पृथ्वी उसे अपनी और खीचं ही लेगी। इस पुरे ब्राह्मण्ड में ऐसा कोई बिन्दु नहीं जहां पर पृथ्वी द्वारा उत्पन्न गुरूत्वतिय बल शुन्य हों।
लेकिन आप कह सकते हैं कि पुरे ब्राह्मण्ड में केवल पृथ्वी ही तो नहीं, और भी अकाशीय पिडं हैं उनके प्रभाव का क्या?
अगर हम सभी पिंडो के द्वारा उत्पन्न बल कि गणाना कर लें और फिर उस ऊचाई को खोजें जहाँ पृथ्वी का गुरूत्वतिय बल शुन्य हो जायें तो धरती कि अलग अलग दिशा में इसका मान भिन्न भिन्न हो जायेगा।उदाहरण देखीयें मान लेते है आप भारत में हैं और चन्द्रमा आपके समक्ष हैं अब सोचिये कि आप उस ऊचाई कि गणाना कर रहें जहाँ गुरूत्वतिय बल शुन्य हो जायेगा, ठिक इसी समय आपका एक मित्र जो कनाडा में हो( दोनो धरती कि विपरीत छोर पर हैं और दोनो में 12,800 किमीं का रेखीय अन्तर हैं)
आपके इस मित्र कि गणाना आपकी गणना से भिन्न होगी क्योंकि वो चन्द्रमा से ज्यादा दुर होगा, इस कारण वास्तविक स्थिति में शुन्य गुरूत्वतिय बल बिन्दु कि गणाना करना जटिल हैं और समर के साथ साथ यह बिन्दु बदलता रहता हैं क्योंकि सभी अकाशीय पिंड चलायेमान हैं।
ये तो आपके सधारण प्रशन का उत्तर हुआ, अब आते हैं आपके सबसे महत्वपूर्ण प्रशन पर, जो आप ने सबसे अन्त में लिखा हैं “और कैसे?”
देखीय जिस सिध्दांत का उपयोग मैंने ऊपर गणाना में किया और जिसे न्युटन ने प्रतिपादित किया था वो यह तो बताता हैं कि गुरूत्वतिय बल कितना और किस दिशा में लगेगा किन्तु यह नहीं बताया कि क्यों लगेगा ? और संयोगवश ये ही आपका प्रशन भी हैं।
इस क्यों कि व्यख्या आइस्टिनं ने कि। असल में जितने भी अकाशिय पिडं हैं वे सब स्पेस-टाइम क्रव में एक डिस्टोरशन पैदा करते हैं जो उस अकाशीय पिंड के चारो और मौजुद स्पेस टाइम क्रव को अपनी आप पास विककृत कर देता है और ये कुछ इस तरह का दिखता हैं
जो यें ढलान आप को दिख रही है ये ढलान ही गुरूत्वतिय बल का कारण हैं और ये ही आपके क्यों का उत्तर हैं
संक्षेप में कहूँ तो द्रव्यमान अपने आस पास मौजूद स्पेस टाइम में एक क्रव पैदा कर देता हैं और ये क्रव ही हमें गुरूत्वतिय बल का अभास करवाता हैं
इस से एक बडी चौकानें वाला निष्कर्ष आइस्टिनं ने निकाला, उनके अनुसार गुरूत्वतिय बल कोई वास्तविक बल नहीं बल्कि इस स्पेस टाइम क्रव के कारण होने वाला अभास भर हैं
……..समाप्त।
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