प्रसिद्ध चित्र है तथा हमारे मस्तिष्क मे परमाणु की कल्पना करते समय यही चित्र सामने आता है।
1913 मे वैज्ञानिको ने प्रस्तावित किया था कि इलेक्ट्रान की नाभिक की परिक्रमा से उत्पन्न केन्द्रापसारी बल (centrifugal force) नाभिक द्वारा इलेक्ट्रान पर लगने वाले विद्युत आकर्षण बल को संतुलित करता है। यह कुछ चंद्रमा की पृथ्वी की परिक्रमा मे उत्पन्न केन्द्रापसारी बल द्वारा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल को संतुलन मे रखने के जैसा था। यह चित्र समझने के लिये ठीक है लेकिन गलत है। यह चित्र परमाणु की संरचना को सही रूप से नही दर्शाता है। इस व्याख्या के अनुसार परमाणु स्थिर नही हो सकता है।
इस अवधारणा का स्रोत गुरुत्वाकर्षण तथा कुलांबीक प्रतिक्रियाओ(Coulombic interactions) मे समानता को माना जाता है। न्युटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार दो पिंडो के मध्य गुरुत्वाकर्षण बल को निम्न समीकरण से दर्शाया जा सकता है।
Fgravity ∝ m1m2/r2
इस समीकरण मे m1 तथा m2
दो पिंड का द्रव्यमान है तथा r दोनो पिंडो के केंद्र के मध्य की दूरी है।
दो आवेशित कणो के मध्य कुलांब बल को निम्न समीकरण से दर्शाया जा सकता है।
FCoulomb ∝ q1q2/r2
इस समीकरण मे q1 तथा q2 दो कणो का आवेश है तथा , r दोनो कणो के केंद्र के मध्य की दूरी है।लेकिन एक इलेक्ट्रान किसी ग्रह या उपग्रह से भिन्न होता है, वह विद्युत आवेशित कण है। यह तथ्य 19 वी सदी के मध्य से ज्ञात है कि विद्युत आवेशित कण की गति मे परिवर्तन(त्वरण) होने पर वह विद्युत चुंबकीय विकिरण उत्सर्जित करता है और इस प्रक्रिया मे उसकी ऊर्जा मे कमी होती है। इस तरह से परिक्रमा करता हुआ इलेक्ट्रान एक तरह से परमाणु को एक नन्हे रेडियो स्टेशन मे बदल देगा, इससे उत्पन्न ऊर्जा इलेक्ट्रान की स्थितिज ऊर्जा(potential energy) की कमी के तुल्य होगी। इस कारण इलेक्ट्रान एक स्पायरल की तरह परिक्रमा करते हुये परमाणू नाभिक मे गीर जायेगा और परमाणू सिकुड़ जायेगा।
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